छल कई बारीक शब्दों के हमें घेरे खड़े हैं। लिए बंसी में नए चारे हर तरफ हैं खड़े मछुआरे चील के हिंसक कई पंजे हमें दाबे पड़े हैं। झेलती आश्वासनों के पुल है नदी भी बेतरह व्याकुल खुरदुरी-सी रेत के चारों तरफ पहरे कड़े हैं
हिंदी समय में माहेश्वर तिवारी की रचनाएँ